Tuesday, February 3, 2009










और भी बहुत कुछ लिखा है बंकिम चंद्र ने
बकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चंद्र पाल ने अपनी राजनीतिक पत्रिका का नाम वंदे मातरम् रखा
बांग्ला भाषा के शीर्ष साहित्यकारों में गिने जाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लेखन से न सिर्फ़ बंगाल के समाज बल्कि पूरे देश को प्रभावित किया.

बंकिम चंद्र एक विद्वान लेखक थे और कम लोगों को पता है कि उनकी पहली प्रकाशित कृति बांग्ला में न होकर अँगरेज़ी में थी, जिसका नाम था 'राजमोहन्स वाइफ़.'

1838 में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में जन्मे बंकिम चंद्र की पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेशनंदिनी' थी जो मार्च 1865 में छपी थी.

'दुर्गेशनंदिनी' एक उपन्यास था लेकिन आगे चलकर उन्हें महसूस हुआ कि उनकी असली प्रतिभा काव्य लेखन के क्षेत्र में है और उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू कर दिया.

अनेक महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों की रचना करने वाले बंकिम की शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई थी.

वे उसी साल ग्रैजुएट हुए थे जिस वर्ष भारत ने अँगरेज़ी साम्राज्य के विरुद्ध पहली बार संगठित विद्रोह किया था. वर्ष 1857 में उन्होंने बीए पास किया और 1869 में उन्होंने क़ानून की डिग्री भी हासिल की.

उच्च सरकारी अफ़सर

बंकिम न केवल एक साहित्यकार थे बल्कि एक सरकारी अधिकारी भी थे, उन्होंने अपने अफ़सर पिता की तरह कई उच्च सरकारी पदों पर नौकरी की और 1891 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए.

रवींद्रनाथ
गुरुदेव रवींद्रनाथ ने वंदे मातरम् के लिए धुन तैयार की और ये काफ़ी लोकप्रिय हो गया

उनकी शादी ग्यारह वर्ष की उम्र में हुई थी और उनकी पत्नी का निधन कुछ ही वर्षों के भीतर हो गया, उसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह राजलक्ष्मी देवी से किया और उनकी तीन बेटियाँ थीं.

1865 में 'दुर्गेशनंदिनी' का प्रकाशन हुआ लेकिन तब उसकी कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई लेकिन एक ही वर्ष के भीतर 1866 में उन्होंने अगले उपन्यास 'कपालकुंडला' की रचना की जो काफ़ी विख्यात हुई.

आनंदमठ

अप्रैल 1872 में उन्होंने बंगदर्शन नाम की पत्रिका निकालनी शुरू की जिसमें उन्होंने गंभीर साहित्यिक-सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दे उठाए. यह अब तक रूमानी साहित्य लिखने वाले व्यक्ति के जीवन में एक अहम मोड़ था.

वंदे मातरम् देखते-देखते राष्ट्रवाद का प्रतीक बना

रामकृष्ण परमहंस के समकालीन और उनके निकट मित्र रहे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने आनंदमठ की रचना की जिसमें बाद में वंदे मातरम् को भी शामिल किया गया जो देखते-देखते पूरे देश में राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया.

गुरूदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने इसके लिए धुन तैयार की और वंदे मातरम् की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने लगी.

अप्रैल 1894 में बंकिम चंद्र का निधन हुआ और उसके 12 वर्ष बाद जब क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल ने एक राजनीतिक पत्रिका निकालनी शुरू की तो उसका नाम उन्होंने वंदे मातरम् रखा. लाला लाजपत राय भी इसी नाम से एक राष्ट्रवादी पत्रिका का प्रकाशन कर चुके हैं.

बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रवादी साहित्यकार को एक विनोदी व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था. उन्होंने हास्य-व्यंग्य से भरपूर 'कमलाकांतेर दफ़्तर' जैसी रचनाएँ भी लिखीं.

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