वंदेमातरम गीत आज़ादी की लड़ाई के दौरान देशभक्ति का एक बड़ा प्रतीक बन गया था |
राष्ट्रगीत को गाए जाने को लेकर छिड़े विवाद थमे नहीं हैं और इस अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों पर इस विवाद की छाया ज़रूर नज़र आई. कई अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों ने वंदे मातरम् की शताब्दी समारोह में शिरकत नहीं की.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान के शिक्षण संस्थानों में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के निर्देश के मुताबिक आयोजित समारोह में राष्ट्रगीत गाया गया.
दिल्ली में खुद अर्जुन सिंह ने स्कूली छात्रों के साथ राष्ट्रगीत गाकर समारोह में हिस्सा लिया.
राजस्थान में राज्य सरकार के आदेश के बावजूद मुस्लिम बहुल इलाक़ो के मदरसों में कोई आयोजन नही हुआ. हालाँकि अन्य स्कूलों में समारोह आयोजित किए गए. मध्य प्रदेश में कुछ मुस्लिम संगठनों की ओर से विरोध प्रदर्शन की ख़बरें हैं.
समारोह
देहरादून में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की अगुआई में राष्ट्रगीत समारोह मनाया गया.
गुजरात में गाँधीनगर स्थित राज्य सचिवालय और अन्य स्कूलों में वंदे मातरम् का गान हुआ.
कांग्रेस शासित महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के नेतृत्व में पार्टी मुख्यालय में वंदे मातरम् समारोह का आयोजन हुआ. महाराष्ट्र में वंदे मातरम् का गान वैकल्पिक रखा गया है.
छत्तसीगढ़ में वंदे मातरम् का सामूहिक गान हुआ और तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में भी समारोह आयोजित किए गए.
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विवादों के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने बुधवार को वो याचिका ख़ारिज कर दी जिसमें उत्तर प्रदेश में वंदे मातरम् का गायन अनिवार्य करने का निर्देश देने की अपील की गई थी.
हरियाणा और पंजाब में भी वंदे मातरम् की शताब्दी समारोह मनाई गई. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने शुरु में इसके गायन पर आपत्ति जताई थी लेकिन बाद में इसने अपना रुख़ बदल दिया.
विवाद
भाजपा का कहना है कि राष्ट्रगीत के शताब्दी समारोह के अवसर पर मदरसों सहित सभी स्कूलों में इसे गाया जाना चाहिए यानी भाजपा चाहती है कि इसे मुसलमान भी गाएँ.
लेकिन मुस्लिम संगठनों का कहना है कि वे इस्लाम के अनुसार अल्लाह के अलावा किसी और की स्तुति नहीं कर सकते.
कुछ मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि इस गीत को गाने से बचने के लिए बच्चों को स्कूल ही नहीं जाना चाहिए तो कुछ संगठनों ने कहा है कि स्कूल गए भी तो मुसलमान बच्चों को इसे नहीं गाना चाहिए.
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा कि सात सितंबर को इस गीत को सभी स्कूलों में गाया जाना चाहिए.
हालांकि बाद में अर्जुन सिंह ने संसद में कह दिया कि गीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, जिसे गाना हो गाए, न गाना हो, न गाए.
लेकिन तब तक तीर तरकश से निकल चुका था.
राजनीति
भाजपा शासित राज्यों में बाक़ायदा घोषणा की गई कि सभी स्कूली बच्चों को गीत गाना होगा. यह और बात है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने आदेश जारी करने के बाद इसे वापस ले लिया.
भारत के दैवी स्वरूप पर हैं आपत्तियाँ |
वैसे भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर स्पष्टीकरण दे दिया है कि वंदेमातरम् गाना किसी पर थोपा नहीं जा रहा है और जिसे न गाना हो वह वंदेमातरम् न गाए. लेकिन वह इसे राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़कर देखती है.
उधर सुन्नी समुदाय के मौलाना महमूद मदनी ने मुसलमानों से अपील की है कि वे वंदेमातरम न गाएँ. उन्होंने बच्चों को स्कूल जाने की सलाह दी है और कहा है कि वे इसे न गाएँ.
उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को वंदेमातरम गाने के लिए बाध्य किया गया तो वे इसका विरोध करेंगे.
हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को इस पर आपत्ति है और वे मानते हैं कि यह विवाद राजनीतिक विवाद है.
उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले संगीतकार एआर रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, 'वंदेमातरम्' को लेकर एक एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ था.
इतिहास
वाराणसी में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में इस गीत को पहली बार सात सितंबर 1905 को सार्वजनिक रुप से गाया गया था, यानी यह वंदे मातरम् गाए जाने की पहली वर्षगाँठ की शताब्दी है.
हालाँकि सुमित सरकार जैसे कई प्रतिष्ठित इतिहासकारों का कहना है कि यह तिथि ग़लत है, उस दिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था.
बहरहाल, आज़ादी के बाद इसे गीत को राष्ट्र गान बनाए जाने की बात चली थी लेकिन उस समय भी कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया था और आख़िर रविन्द्रनाथ ठाकुर के 'जनगणमन' को राष्ट्रगान बनाया गया था.
इसके बाद 'वंदेमातरम्' भारत का राष्ट्रगीत बन गया और अभी भी सार्वजनिक सभाओं में व्यापक रुप से गाया\
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